भाग्य की प्राप्ति

अमृतवेले देखो - देश विदेश के सभी बच्चे एक ही समय पर भाग्य विधाता से मिलन मनाने आते, तो मिलना हो ही जाता है। मिलन मनाना ही मिलना हो जाता है। मांगते नहीं हैं, लेकिन बड़े ते बड़े बाप से मिलना अर्थात् भाग्य की प्राप्ति होना। एक है बाप बच्चों का मिलना, दूसरा है कोई चीज मिलना। तो मिलन भी हो जाता है और भाग्य मिलना भी हो जाता है क्योंकि बड़े आदमी कभी भी किसी को खाली नहीं भेज सकते हैं। तो बाप तो है ही विधाता, वरदाता, भरपूर भण्डारी। खाली कैसे भेज सकते। फिर भी भाग्यशाली, सौभाग्यशाली, पदम भाग्यशाली, पद्मापद्म भाग्यशाली, ऐसे क्यों बनते हैं? देने वाला भी है, भाग्य का खजाना भी भरपूर है, समय का भी वरदान है। इन सब बातों का ज्ञान अर्थात् समझ भी हैं। अनजान भी नहीं हैं फिर भी अन्तर क्यों? (ड्रामा अनुसार) ड्रामा को ही अभी वरदान है, इसलिए ड्रामा नहीं कह सकते।

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