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Showing posts from May, 2023

सच्चा मित्र

 उगते सूरज को तो हर कोई सलाम करता है, जो जीवन की शाम मे साथ दे,वो ही सच्चा मित्र है।

अमीर गरीब

 सच्ची अमीर वो है जिसका दिल बड़ा है।जो सदा देता रहता है। गरीब वो है जो सदा लेता  ही रहता है पर फिर भी खाली ही रहता है।

असली पहचान

 मानव की असली पहचान दो समय पर होती है..एक जब उसके पास सब कुछ होता है दूसरा जब उसके.पास कुछ नहीं होता।

गीता एपीसोड

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अर्जुन को युद्ध के मैदान में विषाद उत्पन्न हुआ,उसे उसके प्रिय जनो के मोह ने घेर लिया और उसके हाथों से शस्त्र गिर गए और उसने युद्ध करने से मना कर दिया। उसे नष्टोमोहा बनाने के लिए इतना सभी गीता का ज्ञान दिया गया। उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया गया, उसे याद दिलाया गया किऊ वह एक योद्धा है और धर्म के लिए युद्ध करना उसका कर्तव्य है। कर्म ही भाग्य का आधार है। कर्मभूमि पर हम सब अपना अपना कर्म करने आए है।  हमें अपना कर्म पूरी निष्ठा से करना है अपने को निमित्त मात्र समझ कर और उसका फल प्रभु को सौंप देना है। भगवान कहते है मैं तुम्हारे रथ का सारथी बंनूगा पर युद्घ तुम्हे करना है। मैं शस्त्र नहीं उठाउंगा।  इस युद्ध मेंं विजय पाकर तुम स्वर्ग के मालिक बनोगे,मै तुम्हें राजाओं का भी राजा बनाउंगा । भगवान ने उसे आत्मा की शाश्वतता  और उसके अनेक जन्मों  का उसे ज्ञान दिया कि मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म हुए है,हम अनेक बार पहले भी मिले है और फिर से मिल रहे है उसे भगवान ने अपना विराट रूप दिखाया और अजुर्न को समृति आई कि वह किसके सामने खड़ा है सर्वशक्तिवान परमात्मा के आगे और वह उसे आज्ञा दे रहा है। यह स्मृति आते ही व

मन को वश कैसे करें

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  मन को वश कैसे करें? मनवशीकरण मंत्र है मनमनाभव। अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मन को श्रेष्ठ मार्ग पर लाया जा सकता है।

Budhi ki preparation yog ke liye

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  Hum sabhi ke liye ye thumb rule hai...hum bahana nai de..Karan nai de...Hume sab pta hai...bas use apply kare Bina tyaag ke Tap nai hota Purani aadto ka Tyaag chaiye zaroor. श्रेष्ट  prapti ko samne rakhenge toh tyaag lagega hi nai Usi mein maza aaega Ek higher taste develop kar lenge toh doosre taste apne aap chhut jaenge. Swamaan aur ruhani ishwariye nashe/khushi se bad kar duniya ka koi anand nai.. Ise roz bhinn bhinn murli  points ke dwara anubhav karna hai Bharpoor aatma kabhi complaint nai karti..kyunki wo complete hai Anand mein rehne  se budhdhi yog ke liye taiyaar hoti hai फिर  neend bhi khulti hai. Aur prapti bhi hoti hai

जी हाज़िर

  सेवा के आधारमूर्त जितने मज़बूत होंगे उतनी सेवा की बिल्डिंग भी मज़बूत होगी। जो बाबा बोले वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा चलाये वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है। बाबा कहे ऐसे चलो, ऐसे रहो - जी हाज़िर, ऐसे क्यों? नहीं। जी हाज़िर। समझा, जी हजूर वा जी हाज़िर। तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे

मनरस

सु ना तो बहुत है, सुनने के बाद स्वरूप बने? सुनना अर्थात् स्वरूप बनना। इसको कहा जाता है मनरस। सिर्फ सुनना तो कनरस हो गया। लेकिन सुनना और बनना, यह है मनरस। मन्‍त्र ही है मनमनाभव। मन को बाप में लगाना। जब मन लग जाता है तो जहाँ मन होगा, वहाँ स्वरूप भी सहज बन जायेंगे

भाग्य की प्राप्ति

अमृतवेले देखो - देश विदेश के सभी बच्चे एक ही समय पर भाग्य विधाता से मिलन मनाने आते, तो मिलना हो ही जाता है। मिलन मनाना ही मिलना हो जाता है। मांगते नहीं हैं, लेकिन बड़े ते बड़े बाप से मिलना अर्थात् भाग्य की प्राप्ति होना। एक है बाप बच्चों का मिलना, दूसरा है कोई चीज मिलना। तो मिलन भी हो जाता है और भाग्य मिलना भी हो जाता है क्योंकि बड़े आदमी कभी भी किसी को खाली नहीं भेज सकते हैं। तो बाप तो है ही विधाता, वरदाता, भरपूर भण्डारी। खाली कैसे भेज सकते। फिर भी भाग्यशाली, सौभाग्यशाली, पदम भाग्यशाली, पद्मापद्म भाग्यशाली, ऐसे क्यों बनते हैं? देने वाला भी है, भाग्य का खजाना भी भरपूर है, समय का भी वरदान है। इन सब बातों का ज्ञान अर्थात् समझ भी हैं। अनजान भी नहीं हैं फिर भी अन्तर क्यों? (ड्रामा अनुसार) ड्रामा को ही अभी वरदान है, इसलिए ड्रामा नहीं कह सकते।

पदमों की कमाई

  हर कदम में चेक करो कि हर कदम अर्थात् हर सेकेण्ड, हर संकल्प में, हर बोल में, हर कर्म में, पदमों की कमाई होती है! बोल भी समर्थ, कर्म भी समर्थ, संकल्प भी समर्थ, समर्थ में कमाई होगी, व्यर्थ में कमाई जायेगी

ताजा भोजन

 MU रली ही ताजा भोजन है, शक्तिशाली भोजन है। जो भी शक्तियाँ चाहिए, उन सबसे सम्पन्न रोज़ का भोजन मिलता है। जो रोज़ शक्तिशाली भोजन ग्रहण करता है वह कमजोर हो नहीं सकता। रोज़ यह भोजन तो खाते हो ना, इस भोजन का व्रत रखने की जरूरत नहीं। रोज़ ऐसे शक्तिशाली भोजन मिलने से मास्टर सर्वशक्तिमान रहेंगे। भोजन के साथ-साथ भोजन को हज़म करने की भी शक्ति चाहिए। अगर सिर्फ सुनने की शक्ति है, मनन करने की शक्ति नहीं, तो भी शक्तिशाली नहीं बन सकते। सुनने की शक्ति अर्थात् भोजन खाया और मनन शक्ति अर्थात् भोजन को हजम किया। दोनों शक्ति वाले कमजोर नहीं हो सकते।

सेवाधारी की विशेषता

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सेवाधारी की विशेषता ही है त्याग और तपस्या। जहाँ त्याग और तपस्या है वहाँ सेवाधारी की सदा सफलता है। सेवाधारी अर्थात् जिसका एक बाप के सिवाए और कोई नहीं। एक बाप ही सारा संसार है। जब संसार ही बाप हो गया तो और क्या चाहिए। सिवाए बाप के और दिखाई न दे। चलते-फिरते, खाते-पीते एक बाप दूसरा न कोई। यही स्मृति में रखना अर्थात् सफलता मूर्त बनना।

जीवनमुक्त

 सदा यह तीन बातें याद करो - त्रिकालदर्शी फिर साक्षी दृष्टा और उसकी रिज़ल्ट विश्व के आगे दृष्टान्त रूप। इस स्थिति को सदा याद रखो तो सदा बन्धन मुक्त जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करेंगे

अर्श निवासी

  बापदादा सभी बच्चों को नयनों की भाषा द्वारा इस लोक से परे अव्यक्त वतनवासी बनाने के इशारे देते हैं। जैसे बापदादा अव्यक्त वतन वासी हैं वैसे ही ततत्वम् का वरदान देते हैं। फरिश्तों की दुनिया में रहते हुए इस साकार दुनिया में कर्म करने के लिए आओ। कर्म किया, कर्मयोगी बने फिर फरिश्ते बन जाओ। यही अभ्यास सदा करते रहो। सदा यह स्मृति रहे कि मैं फरिश्तों की दुनिया में रहने वाला अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप हूँ। फर्श निवासी नहीं, अर्श निवासी हूँ

हीरो पार्टधारी

  जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको हर कदम पर अपने ऊपर अटेन्शन रहता है, उनका हर कदम ऐसा उठता है जो सदा वाह-वाह करें वन्समोर करें। अगर हीरो पार्टधारी का कोई भी एक कदम नीचे ऊपर हो जाता है तो वह हीरो नहीं कहला सकता। तो आप सभी डबल हीरो हो। हीरो विशेष पार्टधारी भी हो और हीरे जैसा जीवन बनाने वाले भी। तो ऐसा अपना स्वमान अनुभव करते हो? एक है जानना और दूसरा है जानकर चलना

जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहज साधन:ट्रस्टी :

  जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहज साधन कौन सा है? श्रेष्ठ जीवन तब बनती जब अपने को ट्रस्टी समझकर चलते। ट्रस्टी अर्थात् न्यारा और प्यारा। तो सभी को बाप ने ट्रस्टी बना दिया। ट्रस्टी हो ना? ट्रस्टी होकर रहने से गृहस्थी-पन स्वत: निकल जाता है। गृहस्थी-पन ही श्रेष्ठ जीवन से नीचे ले आता। ट्रस्टी का मेरापन कुछ नहीं होता। जहाँ मेरापन नहीं वहाँ नष्टोमोहा स्वत: हो जाते। सदा निर्मोही अर्थात् सदा श्रेष्ठ, सुखी। 

प्रवृति में रहते सदा न्यारे और प्यारे

सभी प्रवृति में रहते सदा न्यारे और प्यारे स्थिति में रहने वाले हो प्रवृत्ति के किसी भी लौकिक सम्बन्ध वा लौकिक वायुमण्डल, वायब्रेशन में तो नहीं आते हो? इन सब लौकिकता से परे अलौकिक सम्बन्ध में, वायुमण्डल में, वायब्रेशन में रहते हो? लौकिक-पन तो नहीं है ना? घर का वायुमण्डल भी ऐसा ही अलौकिक बनाया है, जो लौकिक घर न लगे लेकिन सेवाकेन्द्र का वायुमण्डल अनुभव हो ? कोई भी आवे तो अनुभव करे कि यह अलौकिक हैं, लौकिक नहीं। कोई भी लौकिकता की फींलिग न हो। आने वाले अनुभव करें यह कोई साधारण घर नहीं है लेकिन मन्दिर है। यही है पवित्र प्रवृत्ति वालों की सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप। स्थान भी सेवा करे, वायुमण्डल भी सेवा करे।

प्रत्यक्षता और सफलता

 बाह्यमुखता के रस बाहर से बड़े आकर्षित करते हैं, इसलिए इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं। प्रशंसा हो जाती लेकिन प्रत्यक्षता और सफलता नहीं हो सकती, इसलिए अब उद्घाटन की तैयारी करो। उद्घाटन की तैयारी करने वाले सदा फूलों के बगीचे में बापदादा द्वारा लगी हुई फुलवाड़ी, फूलों के विशेषता की खुशबू लेने में और उसी खुशबू को सूंघने में सदा तत्पर होंगे अर्थात् उनकी जीवन रूपी थाली में सदा फूल ही फूल होंगे।

दिनचर्या की सेटिंग

 अपनी दिनचर्या को सेट करो। अभी देखो यहाँ (मधुबन में) इतना बड़ा कार्य है, दिनचर्या सेट होने के कारण चारों ओर के कार्य में सफलता तो पा रहे हैं। कार्य बढ़ रहा है लेकिन दिनचर्या सेट होने के कारण कार्य ठीक हो जाता है, सिर्फ यह अटेन्शन। सुबह से रात तक अपना फिक्स प्रोग्राम डेली डायरी बनाओ क्योंकि जिम्मेवार आत्मायें हो, रिवाजी आत्मायें नहीं। विश्व कल्याणकारी आत्मायें हो। तो जितना बड़ा आदमी होता है, उसकी दिनचर्या सेट होती है। बड़े आदमी की निशानी है एक्यूरेट। एक्यूरेट का साधन है दिनचर्या की सेटिंग।

सितारों की आवश्यकता और विशेषता

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ज्ञान सूर्य बाप को हर सितारे की आवश्यकता और विशेषता सुनाते हुए इतना हर्षित हो रहे थे कि बात मत पूछो। उस समय का चित्र बुद्धियोग की कैमरा से खींच सकते हो? साकार में जिन्होंने अनुभव किया वह तो अच्छी तरह से जान सकते हैं। चेहरा सामने आ गया ना? क्या दिखाई दे रहा है? इतना हर्षित हो रहे हैं जो नयनों में मोती चमक रहे हैं। आज जैसे जौहरी हर रत्न के महत्व का वर्णन करते हैं, ऐसे चन्द्रमा हर रत्न की महिमा कर रहे थे। आप समझते हो कि आप सबकी महिमा क्या की होगी?

स्वमान

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  निर्बल नहीं हो, बलवान हो क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिमान हो। ऐसा रूहानी नशा सदा रहता है? रूहानियत में अभिमान नहीं होता है। स्वमान होता है। स्वमान अर्थात् स्व-आत्मा का मान। स्वमान और अभिमान दोनों में अन्तर है। तो सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहो। अभिमान की सीट छोड़ दो।

विशेषता

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बाप जानते हैं जैसे राज्य परिवार के हर व्यक्ति में इतनी सम्पन्नता जरूर होती है जो वह भिखारी नहीं हो सकता। ऐसे गुणों के सागर बाप के बच्चे कोई भी गुण की विशेषता के बिना बच्चा कहला नहीं सकते।

मिलन मनाने वाले

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बाप को बड़े-बड़े शास्त्रों की अथॉरिटी, धर्म के अथॉरिटी, विज्ञान के अथॉरिटी, राज्य के अथॉरिटी, बड़े-बड़े विनाशी टाइटल्स के अथॉरिटीज़, उन्होंने नहीं जाना, लेकिन आप सबने जाना। वे अब तक आवाह्न ही कर रहे हैं। शास्त्रवादी तो अभी हिसाब ही लगा रहे हैं। विज्ञानी अपनी इन्वेन्शन में इतने लगे हुए हैं, जो बाप की बातें सुनने और समझने की फुर्सत नहीं है। अपने ही कार्य में मगन हैं। राज्य की अथॉरिटीज़ अपने राज्य की कुर्सी को सम्भालने में बिजी हैं। फुर्सत ही नहीं है। धर्मनेतायें अपने धर्म को सम्भालने में बिजी हैं कि कहाँ हमारा धर्म प्राय:लोप न हो जाए। इसी हमारे-हमारे में खूब बिजी है। लेकिन आप सब आवाह्न के बदले मिलन मनाने वाले हो। यह विशेषता वा महानता सभी की है।

आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है

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  हम आत्माओं को इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है? जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया। ऐसे समझते हो? पहले तो सिर्फ पुकाराते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना। अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे। लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। 

तकदीर की लकीर

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जैसे हाथों द्वारा तकदीर देखते हैं तो क्या देखते हैं? लकीर लम्बी है, बीच-बीच में कट तो नहीं है। ऐसे यहाँ भी ऐसा ही है। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म वाले हैं तो तकदीर की लकीर भी लम्बी और सदा के लिए स्पष्ट और श्रेष्ठ है। अगर कभी-कभी श्रेष्ठ, कभी साधारण तो लकीर में भी बीच-बीच में कट होता रहेगा। अविनाशी नहीं होगा। कभी रूकेंगे, कभी आगे चलेंगे, इसीलिए सदा श्रेष्ठ कर्मधारी। बाप ने तकदीर बनाने का साधन दे ही दिया है - श्रेष्ठ कर्म। कितना सहज है तकदीर बनाना। श्रेष्ठ कर्म करो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। श्रेष्ठ कर्म का आधार है - श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहना अर्थात् श्रेष्ठ कर्म होना। 

सतयुग के मानव कैसे होंगे??

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  *सतयुग के मानव कैसे होंगे??* 👸🏻🫅🏻👸🏻🤴🫅🏻👸🏻🫅🏻🤴 ♥️16 कला सम्पूर्ण,सर्वगुणसम्पन्न ,सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण अहिंसक,मर्यादा पुरुषोत्तम यह सतयुग में रहने वाले सभी मनुष्यों की 👌क्वालिटी होगी। सतयुग में पवित्र गृहस्थधर्म होगा। बच्चें विकारों की पैदाइश नही होंगे। वहां यथा राजा तथा प्रजा होगी अर्थात जितने सुखी समृद्ध राजाये होंगे वैसे प्रजा भी सुखी सम्पन्न होंगे। सबका खान पान अत्यंत सात्विक शुद्ध होगा। 👌🏼पहनावा रॉयल होगा। वहां का हर मनुष्य सभ्य और दैवी मैनर्स वाला होगा।वह किसी पर थोड़ा भी क्रोध  नही करेगा। क्रोध करना हिंसा है और किसी भी तरह का हिंसा करना पापकर्म है।और सतयुग में कोई भी पाप कर्म नही करता। क्योंकि *देवतायें सम्पूर्ण अहिंसक थे,विकारो से अंजान थे।* इसलिए देव मनुष्य और असुर मनुष्य एक साथ,एक समय इस सृष्टि 🌎पर रहे ये नही होता। so सतयुग में असुर, विकारी संस्कार वाले कोई मनुष्य या प्राणी नही होते और कलियुग में देवी देवता समाज वाले कोई मनुष्य नही है। 🧌काले काले,सिंग वाले या भयानक दिखने वाले असुर होते ही नही है। ना ही चार या आठ हाथ वाले देवता होते है।