गीता एपीसोड
अर्जुन को युद्ध के मैदान में विषाद उत्पन्न हुआ,उसे उसके प्रिय जनो के मोह ने घेर लिया और उसके हाथों से शस्त्र गिर गए और उसने युद्ध करने से मना कर दिया।
उसे नष्टोमोहा बनाने के लिए इतना सभी गीता का ज्ञान दिया गया।
उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया गया, उसे याद दिलाया गया किऊ वह एक योद्धा है और धर्म के लिए युद्ध करना उसका कर्तव्य है।
कर्म ही भाग्य का आधार है।
कर्मभूमि पर हम सब अपना अपना कर्म करने आए है।
हमें अपना कर्म पूरी निष्ठा से करना है अपने को निमित्त मात्र समझ कर और उसका फल प्रभु को सौंप देना है।
भगवान कहते है मैं तुम्हारे रथ का सारथी बंनूगा पर युद्घ तुम्हे करना है।
मैं शस्त्र नहीं उठाउंगा।
इस युद्ध मेंं विजय पाकर तुम स्वर्ग के मालिक बनोगे,मै तुम्हें राजाओं का भी राजा बनाउंगा।
भगवान ने उसे आत्मा की शाश्वतता और उसके अनेक जन्मों का उसे ज्ञान दिया कि मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म हुए है,हम अनेक बार पहले भी मिले है और फिर से मिल रहे है
उसे भगवान ने अपना विराट रूप दिखाया और अजुर्न को
समृति आई कि वह किसके सामने खड़ा है सर्वशक्तिवान परमात्मा के आगे और वह उसे आज्ञा दे रहा है।
यह स्मृति आते ही वह प्रभु की शरण में आ जाता है और युद्ध के लिए तैयार हो जाता है और विजयी भी होता है।
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