मनरस
सुना तो बहुत है, सुनने के बाद स्वरूप बने? सुनना अर्थात् स्वरूप बनना। इसको कहा जाता है मनरस। सिर्फ सुनना तो कनरस हो गया। लेकिन सुनना और बनना, यह है मनरस। मन्त्र ही है मनमनाभव। मन को बाप में लगाना। जब मन लग जाता है तो जहाँ मन होगा, वहाँ स्वरूप भी सहज बन जायेंगे
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