अर्श निवासी
बापदादा सभी बच्चों को नयनों की भाषा द्वारा इस लोक से परे अव्यक्त वतनवासी बनाने के इशारे देते हैं। जैसे बापदादा अव्यक्त वतन वासी हैं वैसे ही ततत्वम् का वरदान देते हैं। फरिश्तों की दुनिया में रहते हुए इस साकार दुनिया में कर्म करने के लिए आओ। कर्म किया, कर्मयोगी बने फिर फरिश्ते बन जाओ। यही अभ्यास सदा करते रहो। सदा यह स्मृति रहे कि मैं फरिश्तों की दुनिया में रहने वाला अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप हूँ। फर्श निवासी नहीं, अर्श निवासी हूँ
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